आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग -2
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शादी की सभी रस्में निभाने के बाद साधना सूनसान जंगल के पास वाले रास्ते से अपने पति सिद्धार्थ के साथ दुल्हन बनी फूलों से सजी हुई कार से जा रही है कि अचानक पत्थर से टकराना और कार के आगे के दोनों टायरों का पंचर हो जाना।इस सफर में साधना लाल रंग की तुलना अपने अरमानों का गला घोंट अपने ही खून से कर रही है। वहां कोई और भी है जिसकी नजर सिद्धार्थ और साधना पर है।
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"जल्दी अंदर बैठ जाओ बहादुर।" सिद्धार्थ ने ड्राइवर को अंदर खींचते हुए कहा कि तभी ड्राइवर हवा में उछलता हुआ दूर जा गिरा।
वो उठने की कोशिश करता और हर कोशिश में नाकाम होता गया। एक अजीब सी आवाज से सिद्धार्थ भयभीत हो गया । उसे लगा कोई कानों में फुसफुसाया
"तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी मैं 'मेरी जान'।"
ये आवाज़ और इस तरह 'मेरी जान' तो मुझे सिर्फ दीपा कहती थी। सिद्धार्थ कांप रहा था।
साधना तो जैसे गहरी नींद *में थी। ड्राइवर के बाद अब उसी पर हमला होगा और उसकी मौत के साथ ये सफर खत्म।
और फिर वही आवाज चीख में सुनाई दी.." भाग जा साsssssले.. अपनी जान प्यारी है तो"
एक हवा का तेज झोंका जैसे किसी की तेज फूंक ने ड्राईवर को जंगल से दूर उड़ा दिया।
ड्राइवर जैसे ही मेन रोड पर आया वो हांफते हुए दौड़ने लगा। उसे थोड़ी ही दूर पर एक एस टी डी बूथ नज़र आया, उसने फोन उठाया और नंबर घुमाया १००
"हैलो पुलिस "
और तभी धड़ाम से उसका सिर टेलिफोन बूथ पर किसी ने दे पटका।
"हैलो हैलो कौन..
कौन बोल रहा है। रात में भी चैन नहीं है इन लोगों को..,,," दूसरी तरफ से पुलिस चौकी से ऊंघता हुआ हवलदार बोल रहा था।
ये क्या हो रहा है उसके साथ??
ड्राइवर कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसकी मौत हो गई।
इधर ड्राइवर ने गाड़ी का दरवाजा खोला और जैसे गाड़ी स्टार्ट किया , सिद्धार्थ ने हैरानी से पूछा, "तुम ठीक हो, और गाड़ी के दोनों टायर तो पंचर हो गए थे फिर अब गाड़ी स्टार्ट कैसे हुई।"
ड्राइवर ने सिर्फ हांँ में गर्दन हिलाई और गाड़ी अपनी रफ़्तार से मंजिल की तरफ बढ़ने लगी।
सिद्धार्थ हैरान हो सोच रहा था क्या वो सपना था,उनकी गाड़ी का पंचर होना, ड्राइवर का हवा में उड़ना। उसके कानों में दीपा की आवाज सुनाई देना।
नहीं ऐसा नहीं हो सकता,ये दीपा मुझसे क्या चाहती है पता नहीं। क्यों मेरे मन मस्तिष्क पर कब्जा जमा कर बैठी है।सब भूलकर मैं अपनी माँ और अपने परिवार की खुशियों के लिए नए जीवन की शुरुआत करना चाहता हूँ पर उसे इस तरह भूलना मेरे लिए नामुमकिन है।
एक नज़र ड्राइवर पर डाली जो गाड़ी चला रहा है और एक नज़र अपने पास बैठी साधना पर डालता है और सोचता है इसका क्या कसूर है पर मैं इसे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार नहीं कर पाऊंगा। माँ को बहु चाहिए बस उन्हीं के लिए मैंने इस शादी के लिए हाँ की थी। जिस तरह घर के बाकी सभी सदस्य रहते हैं उसी तरह यह भी रहेगी पर मुझसे पति का प्यार देना संभव नहीं होगा। दीपा को भूलना आसान नहीं है मेरे लिए। पता नहीं वो कब मेरी यादों से मेरा पीछा छोड़ेगी। सब भूल जाना चाहता हूँ, सोचते हुए ही उसे वो दिन याद आ गया।
दस साल पहले...
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सिद्धार्थ दिल्ली विश्वविद्यालय में बी एस सी कैमिस्ट्री ऑनर्स के फर्स्ट ईयर एडमिशन की लाईन में खड़ा है। एक दिन पहले ही बिहार के राँची शहर से दिल्ली महानगर में अपने सपने पूरे करने आया था। उन दिनों बिहार का विभाजन नहीं हुआ था और रांँची बिहार में ही पड़ता था।
सिद्धार्थ के पिता वहीं एक छोटे से स्कूल में टीचर थे पर अपने बच्चों के लिए सपने बड़े बड़े देखें थे।
इस शहर में उसका कोई जान पहचान का नहीं था। रास्ते के लिए माँ ने नमकीन और घर का बनाया ठेकुआ दिया था जो तीन दिन के सफर में खत्म हो गया था।वो राँची से मूरी एक्सप्रेस से जनरल बोगी से दिल्ली आया था जिसमें उसे तीन दिन लग गए थे।
जुलाई की गर्मी और पहली बार इतना लंबा सफर अकेले तय किया था। जैसे तैसे कॉलेज पहुंचा और एडमिशन का फार्म ले भरा और अपने नम्बर का इंतजार करने लगा। उसी की तरह अलग अलग शहर से कोई उत्तर प्रदेश,कोई मध्यप्रदेश , बंगाल तो कोई राजस्थान से आया था। उनके बैग कांधे पर लटके हुए थे और पसीने से लथपथ अपने भविष्य के सपने आंखों में लिए खड़े थे। सिद्धार्थ भी कभी यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग को देखता और कभी अपने साथ खड़े लड़कों से बात करता। उन तीन घंटों में ही उसके तीन दोस्त बन गए।
रोशन जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से था, राजेश जो बंगाल के दुर्गापुर से और अजय जो राजस्थान के जयपुर से था।
चारों काफी घुल मिल गए थे लग ही नहीं रहा था कि कुछ घंटे पहले ही मिलें थे।
"क्या लगता है 66% वालों का एडमिशन हो जाएगा यहांँ दिल्ली के किसी कॉलेज में।"
रोशन ने कहा तो राजेश बोला," ना रे! बाबा कैसे होगा।मेरा तो 85% है फिर भी डर लग रहा है। सुना है 90% से कम वालों का एडमिशन दिल्ली के किसी कॉलेज में नहीं होगा।"
अजय जिसके बारहवीं में 60% मार्क्स थे, बड़े इत्मीनान से बोला,"अरे क्या हुआ अगर रेगुलर कॉलेज में एडमिशन नहीं हुआ और ये ऑनर्स वाले सब्जैक्ट नहीं मिले।कुछ भी पढ़ लेंगे किसी भी कॉलेज में नहीं तो कॉरेस्पॉन्डेंस है ना। दिल्ली में तो रहेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय की डिग्री तो मिलेगी। फिर जब अपने शहर अपने घर जाएंगे तो हम भी दिल्ली वाले कहलाएंगे।"
अजय की बातों में एक अजीब जादू था, उसके पूरे व्यक्तित्व में ही जादू झलक रहा था। साधारण खादी का कुर्ता और जींस पहने कंधे पर अपना स्कूल बैग जिसमें कुछ कपड़े और जरूरी सामान रखा था टांगे हुए था।
सिद्धार्थ जो अपने पिता की ही सफेद कमीज और काली पैंट पहने आंखों पर मोटा चश्मा लगाए सबकी बातें ध्यान से सुन रहा था। उसके बारहवीं में 98% मार्क्स आए थे। पढ़ने में बहुत होशियार था और बिना ट्यूशन पढ़े ही हर साल पूरे स्कूल में अव्वल आता था। डर तो वो भी रहा था, भले उसकी इंग्लिश पर भी पकड़ अच्छी थी पर दिल्ली शहर की बोलचाल ही अलग है। पता नहीं वो यहाँ एडजस्ट कर पाएगा या नहीं। कुछ भी हो मन लगाकर पढ़ना है, बड़ा आदमी बनना है।उसके पिता उसके रोल मॉडल हैं पर वो एक साधारण स्कूल टीचर बनकर ही नहीं रहेगा। वो विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करेगा या आई एस ऑफिसर बनेगा।खूब मेहनत करेगा और बड़ा आदमी बनेगा। उसने खुद से वादा किया।
जब तक उनका नम्बर आता लंच टाईम हो गया और कांउटर बंद हो गया।
"लो जी सरकारी नौकरी वालों के मजे हैं, आधी छुट्टी की घंटी तो समय पर सुनाई देती है और ये महाशय समय पर आएंगे नहीं ।"
रोशन ने कहा।
अजय बोला, "चलो हम सब दिल्ली यूनिवर्सिटी की कैंटीन तो देख लें,जरा चाय नाश्ता का इंतजाम देखते हैं।पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।"
उन चारों ने सहमति जताई और कैंटीन पहुंँच गए। पर वहाँ का नज़ारा देख चारों को बड़ा अजीब लगा।जब लड़कियों को लड़कों के साथ बैठ सिगरेट पीते देखा।
धुंए का छल्ला उड़ाती एक लड़की जिसने टाईट टॉप और फटी जींस जो उसके दो घुटनों से ऊपर थी खुले लंबे बाल थे वो एकटक उन चारों को ही देख रही थी जैसे चिड़िया घर के जानवरों को देख रही हो और ऐसी ही हालत इन चारों की भी थी। अपने शहर और गाँव में कभी किसी लड़की को इस तरह नहीं देखा था।
"अरे! मुँह फाड़ कर देखता ही रहेगा या बोलेगा क्या खाएगा।" अजय ने राजेश का खुला मुँह बंद करते हुए कहा।
राजेश बोला,"आमि मिष्टी दोइ खाबो। "
"राम जी कहाँ से लाएं इसके लिए मिष्टी लोग... यहाँ तो..।" ऊपर अपने दोनों हाथ फैलाते हुए रोशन बोला।
" जी यहां समोसा बर्गर पैटीज़ मिलेगा। "
कहकर वहीं पास बैठी वही लड़की जो सिगरेट के कश भरती धुंआ उड़ाती उन्हें ही देख रही थी। अपनी कुर्सी से उठकर उन चारों के पास आई और सिद्धार्थ की तरफ हाथ बढ़ाया..
"हाय आई एम दीपा बी ए इंग्लिश ऑनर्स फाइनल ईयर ।"
क्रमशः
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
## लेखनी धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता
11.09.2022
Neeraj Agarwal
22-Sep-2022 04:07 PM
बहुत बढ़िया है जी
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Pallavi
13-Sep-2022 06:26 PM
Beautiful horror story
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Chirag chirag
13-Sep-2022 05:01 PM
Nice post
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